Saturday, March 23, 2019

10 Principles of Success | सफलता के १० मूल-मंत्र एवं सिद्धांत



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10 Principles of Success

दोस्तों, यदि हमें किसी भी कार्य क्षेत्र में अपार सफलता हासिल करनी है तो हमें निरंतर प्रयास तो करना ही पड़ेगा परन्तु उसके साथ-साथ सफलता के मूल सिद्धान्तों का भी पालन करना पड़ेगा।


किसी भी क्षेत्र में अपार सफलता हासिल करने के निम्न १० मूल मंत्र या सिद्धांत 10 Principles of Success होतें हैं यदि हम इन सभी का पालन या अनुसरण करेंगें तो निश्चित ही सफलता को हासिल कर सकेंगें :-

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१) प्रयास करना हमारा प्रथम कर्तव्य है लेकिन यह जरूरी नहीं है की हमारी अपेक्षा के अनुसार हमें परिणाम मिलें इसलिए हमें जो भी परिणाम मिलें उसे स्वीकार करना चाहिए और तनावमुक्त रह कर निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिये। यही सफलता का प्रथम मूल मंत्र है।


२) यदि हमें निरन्तर प्रयास के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है तो हमें अपनी असफलता के कारणों को ढूढ़ कर उन्हें दूर करना चाहिए और पुनः कोशिश करनी चाहिए और यदि फिर भी सफल न हुए तो उस क्षेत्र के सफल व्यक्ति से सलाह कर फिर से कोशिश करनी होगी। यही सफलता का दूसरा मूल मंत्र है।


३) हमें हमारी सफलता के लक्ष्यों की प्राप्ति तभी हो सकती है जब हम अपने प्रयासों का दूसरों के साथ सही तालमेल बैठायें यही सफलता का तीसरा मंत्र है।


४) सफलता का चौथा मंत्र कहता है कि सफलता एक यात्रा है मंजिल नहीं बस जरूरत है तो इस यात्रा में सही मार्ग एवं सही दिशा पर चलने की बजाय केवल सही रफ़्तार से चलने के।


५) सफलता के रास्ते में किस्मत भी उन्ही का साथ देती है जो निरंतर काम के प्रयास में लगे रहतें है और हमेशा एक ईमानदार प्रयास करते रहतें है। यही सफलता का पांचवा मूल मंत्र है।





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६) दोस्तों छठा मूल मंत्र यह कहता है कि किसी भी कार्य क्षेत्र में सफलता तब तक नहीं मिल सकती जब तक हमें उसे करने में  भरपूर आनंद न आये।


७) सफलता का सातवाँ मूल मंत्र यह कहता है कि हमें सफलता पाने के लिए बाहर से बिल्कुल शांत और गंभीर रहना चाहिए तथा भीतर से कार्य क्षेत्र में हमेशा गतिमान रहना चाहिए। सफलता का यह गुण हमें एक बत्तख के व्यवहार से सीखना चाहिए जो जल की सतह के ऊपर तो बिल्कुल शांत और गंभीर तथा जल के भीतर तेजी से गतिमान रहती है ।


८) सफलता का आठवाँ मूल मंत्र यह है कि हमें हमेशा सबसे उत्तम करने का प्रयास करना चाहिए जिससे लोग हमेशा हमारे कार्य की प्रशंसा करें।


९) दोस्तों सफलता का नौवां मंत्र यह कहता है कि हमें हमेशा सभी जरूरी एवं गैरजरूरी कामों को प्राथमिकता के आधार पर बांट कर उन्हें करना चाहिये जिससे हमारा किया गया प्रयास जरूर सफल  होगा और तनाव भी कम रहेगा।


१०) सफलता का दसवां मंत्र यह कहता है कि हमें उपरोक्त सभी  मंत्रों का सही एवं कठोरता से कार्य के क्षेत्र में पालन करना चाहिये और एक कार्य योजना बना कर ईमानदार प्रयास करना चाहिए जिससे हमें जीवन एवं कार्यक्षेत्र में सफलता जरूर मिलेगी।


यदि हम सभी मंत्रों का पालन करेंगे तो सफलता जरुर मिलेगी परन्तु सफलता को एकबार पाने के बाद उस सफलता को कायम रखने के लिए हमें निरंतर कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी उस सफलता को बनायें रखने के लिए।

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धन्यवाद ।


Thursday, March 21, 2019

Double Entry System and 3 Rules of Journalising | दोहरा लेखा प्रणाली और जर्नल में लेखे करने के 3 नियम




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दोहरा लेखा प्रणाली और जर्नल में लेखे करने के  3 नियम 

दोस्तों, इस पोस्ट में हम आपको दोहरा लेखा प्रणाली और जर्नल में लेखे करने के 3 नियमों के बारे में बताएंगे जिससे आप व्यापार में खातों एवं लेंन-देंनों का लेखा आसानी से कर सकते हैं।



परिचय (Introduction) :- दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) लेखाकर्म (बहीखाता) की एक ऐसी प्रणाली हैं जिसमें किसी भी खाते की  दोहरी प्रविष्टि की जाती है अर्थात लेखा करने के लिए किसी  एक खाते  को डेबिट (ऋणी) और उसके समतुल्य  किसी दूसरे खाते को क्रेडिट (धनी) किया जाता है।


उदाहरण (Example) : यदि सोहन को ८००  रूपए  का माल बेचा तो इस लेखे की दो खातों में निम्न प्रविष्टियाँ   करनी होगी-

१)      सोहन के  खाते में ८०० रूपए की डेबिट प्रविष्टि की जाएगी, तथा

२)      विक्रय खाते में ८०० रूपए की क्रेडिट प्रविष्टि की जाएगी।



दोहरी लेखा प्रणाली  (Double Entry System) को आज के युग में बही खाते की उत्तम पद्धति  माना जाता है क्योंकि यह एक आधुनिक एवं पूर्ण पद्धति है और  यह लेखे और व्यापारी के समस्त उद्देश्यो की पूर्ति करती है।


दोहरा लेखा प्रणाली में लेखे करने के नियम (Rules of Journalising in Double Entry System) :- दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) के सिद्धान्त निम्न तीन नियमों पर आधारित होते हैं परंतु उनको समझने से पहले हमें ये समझना होगा कि खाता किसे कहतें हैं ?


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खाता (Account) :- विभिन्न व्यापारिक लेंन-देंन व्यापारिक पुस्तकों में जिन स्थानों पर लिखे जाते हैं उन्हें खाता कहते हैं। खाते तीन प्रकार के होते हैं।


१)      व्यक्तिगत खाते (Personal Accounts) :- व्यक्तिगत खातों के अंतर्गत किसी व्यक्ति, संस्था और कंपनियों के नाम के खाते आते हैं जैसे :- रमेश का खाता, सुमन का खाता,फ्लोर मिल लिमिटेड का खाता या अपना क्लब का खाता आदि सभी व्यक्तिगत खातों के उदाहरण हैं 
  

लेखा के नियम :-

  •          (लाभ) पाने वाले को डेबिट करो (Debit the Receiver) तथा
  •          (लाभ) देने वाले को क्रेडिट करो (Credit the giver)

२)      वास्तविक खाते (Real Accounts) :- वास्तविक खातों के अंतर्गत किसी व्यापार कि सम्पत्तियों से संबन्धित  खाते आते हैं।
   जैसे :- रोकड़ खाता, भवन खाता, माल खाता या फर्नीचर खाता आदि सभी वास्तविक खातों के उदाहरण हैं 
  

लेखा के नियम (Rules of Accounting) :-

  •            व्यापार में जो आये उसे डेबिट करो (Debit what comes in) तथा
  •            व्यापार से जो जाये उसे क्रेडिट करो (Credit what goes out)

३)   अवास्तविक या नाममात्र के खाते (Unreal or Nominal Accounts) :- जो खाते व्यापार में सिर्फ नाममात्र के लिए खोले जते  हैं उन्हे अवास्तविक या नाममात्र के खाते  कहते हैं। जैसे :- मजदूरी खाता, वेतन खाता, किराया खाता या ब्याज खाता आदि सभी नाममात्र खातों के उदाहरण हैं । 

लेखा के नियम (Rules of Accounting) :-

  •  सभी व्ययों और हानियों को डेबिट करो (Debit all Expenses and Losses) तथा
  •    सभी आयों और लाभों को क्रेडिट करो (Credit all incomes and gains)

यह तीनों  नियम कभी नहीं बदलते हैं और इनका बहीखातों में दृढ़ता से प्रयोग किया जाता है।


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इन तीनों नियमों को कुछ अन्य तरह से भी याद कर के सरलता से प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके लिये सबसे पहले सभी सौदों को उनके लेन-देनों कि प्रकृति के अनुसार पहचान कर न्हें दो अलग-अलग रूपों में  करना आवश्यक होता है।

उदाहरण एवं डेबिट/क्रेडिट के नियमों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है :-

क्रम संख्या

लेखों का  प्रकार

लेखों का  उदाहरण

खाता (डेबिट)

खाता (क्रेडिट)

अंतिम खातों में लेखा

व्यक्तिगत खाते (Personal Accounts)
व्यक्ति, संस्था और कंपनियाँ (person, organization and companies)
लाभ पाने वाले को (to the receiver)
लाभ देने वाले को (to the giver)
आर्थिक पत्र में (in Balance Sheet)
वास्तविक खाते (Real Accounts)
वस्तुएँ सम्पत्तियाँ रोकड़ सहित (property belonging to a business including cash)
आने पर (वस्तु) सम्पत्ति को (What comes in)
जाने पर (वस्तु) सम्पत्ति को (was goes out)
(वस्तु) आय
व्यय खाते में, एवं सम्पत्तियाँ आर्थिक पत्र में (Goods in Profit & Loss account and Assets in Balance Sheet)
नाम मात्र के खाते (Unreal or nominal accounts)
सेवाओं से सम्बंधित ; जैसे-किराया, वेतन, मजदूरी, आदि (Related to services; Such as rent, salary, wages, etc.)
सेवाओं के लिए भुगतान किया गया है तो सेवाओं को (व्ययं एवं हानि) (in Loss & Expenditure)
सेवाओं के लिए प्राप्त किया गया है तो सेवाओं को (आय एवं लाभ) (in Profit & Income)
आय-व्यय खाते में (in Profit & Loss account)
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धन्यवाद ।