Monday, March 4, 2019

What is the bookkeeping and accountancy | Meaning - Definition | Functions - Objectives | Advantages | पुस्तपालन ( बहीखाता ) एवं लेखाकर्म ( लेखाशास्त्र ) क्या है | अर्थ - परिभाषा | कार्य - उद्देश्य एवं लाभ


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परिचय (Introduction) :-

दोस्तों, यह मेरे ब्लॉग की प्रथम पोस्ट है और यह वाणिज्य के  पुस्तपालन ( बहीखाता ) एवं लेखाकर्म (  लेखाशास्त्र ) से सम्बन्धित है, इसमें  पुस्तपालन ( बहीखाता ) एवं लेखाकर्म ( लेखाशास्त्र ) के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी बहुत ही आसान शब्दों में दी गयी गई है, यह जानकारी आप सभी के लिए बहुत ही ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी होगी ।  

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पुस्तपालन (बहीखाता) का अर्थ (Meaning of Bookkeeping) :-



  •  पुस्तपालन ( बहीखाता ) एक विज्ञान एवं कला है, जिसके अनुसार एक  व्यक्ति, संस्था एवं फर्म के लेनदेनों का लेखा-जोखा  किसी निश्चित पुस्तकों में, एक निश्चित प्रणाली के नियमों के अनुसार एवं नियमित रूप से किया जाता है। 

  • बहीखाते को अंग्रेजी में बुक-कीपिंग कहते हैं वाणिज्य में बुक कीपिगं का आशय हिसाब लिखने से लगाया जाता है।इसलिए इसका सम्पूर्ण अर्थ  हिसाब-किताब की बहियों में व्यापारिक सौदों को लिखने की कला से है । इसे  पुस्तपालन भी कहते हैं और व्यावसायिक पुस्तकों में विधिपूर्वक  लेखन पुस्तपालन कहलाता हैं। पुस्तपालन का सम्बन्ध वित्तीय आँकड़ों के लेखों से है । व्यावसायिक लेन-देनों का स्थायी रूप से हिसाब रखने की कला को भी पुस्तपालन कहते हैं।

  • अगर पुस्तपालन (Book-Keeping) का हिंदी में अर्थ निकाला जाये तो इसका मतलब है पुस्तकों को पालना या पुस्तकों को रखना लेकिन ये तो सिर्फ इस शब्द का अर्थ है वास्तव में पुस्तपालन (Book- Keeping) का मतलब नियमानुसार हिसाब-किताब रखना है जिन पुस्तकों में हिसाब किताब रखा जाता है उन्हें बहियाँ (Books) भी कहते हैं जैसे :- Purchase (क्रय), Sales (विक्रय), Receipt और Payment, Expenses इत्यादि  पुस्तपालन बहियाँ (Books) के उदाहरण हैं। पुस्तपालन (Book-Keeping) के अन्तर्गत निश्चित सिद्धान्तों के आधार पर व्यापारिक व्यवहारों का संपूर्ण  लेखा किया जाता है।


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परिभाषा (Definition) :-


" पुस्तपालन ( बहीखाता ) व्यापारिक व्यवहारों का       निश्चित पुस्तकों में लेखा करने की कला है । "  


श्री जे. आर. बाटलीबॉय के अनुसार - “ व्यापारिक व्यवहारों को हिसाब-किताब की निर्धारित पुस्तकों में लिखने की कला का नाम बुक-कीपिंग है।


“Book-keeping is an art of recording business dealings in a set of books.” J.R. Batliboi”

श्री रौलेण्ड के अनुसार - पुस्तपालन का आशय हिसाब-किताब के सौदों को कुछ निश्चित सिद्धांतों के आधार पर लिखना है।

उपरोक्त के बिश्लेषण से हम यह कह सकते है कि बहीखाता या पुस्तपालन वह कला व विज्ञान है, जिसके माध्यम से समस्त मौद्रिक व्यवहारों को हिसाब-किताब की पुस्तकों में नियमानुसार लिखा जाता है। 

बही-खाता या पुस्तपालन (Book-Keeping) एक ऐसी पद्धति है जिसमें किसी कम्पनी, गैरलाभकारी संगठन या किसी व्यक्ति के वित्तीय लेंन-देनों के आंकड़ों का प्रतिदिन के आधार पर भंडारण, रिकॉर्डिंग, विश्लेषण और व्याख्या करने की प्रक्रिया शामिल होती है। इस प्रक्रिया में बिक्री, प्राप्तियां, लेनदेन में खरीद, और किसी व्यक्ति/निगम/संगठन द्वारा भुगतान आदि सम्मिलित किए जाते हैं। बुककीपिंग, एक बुककीपर द्वारा किया जाता है जो किसी व्यवसाय के प्रतिदिन के वित्तीय लेंन-देनों को रिकॉर्ड करता है। प्रक्रिया के लिए शुद्धता इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तिगत वित्तीय लेनदेन के रिकॉर्ड व्यापक और सही हैं । प्रत्येक लेनदेन, चाहे वह बिक्री हो या खरीद हो, दर्ज किया जाना चाहिए।  बही खाता का प्रचलन भारत में कई शताब्दियों से है यह पद्धति भारत में यूनानी एवं रोमन साम्राज्यों के पहले भी विधमान थी।


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लेखाकर्म (लेखाशास्त्र) का अर्थ (Meaning of Accountancy) :-

लेखांकन शेयर धारकों और प्रबंधकों के लिए किसी व्यावसायिक इकाई के बारे में वित्तीय जानकारी संचारित  करने की कला है। लेखांकन को व्यवसाय की भाषाकहा गया है और हिन्दी में एकाउन्टैन्सीके समतुल्य लेखाविधितथा लेखाकर्मशब्दों का भी प्रयोग किया जाता है।

लेखाशास्त्र गणितीय विज्ञान की वह शाखा है जो व्यवसाय में सफलता और विफलता के कारणों का पता लगाती है। लेखाशास्त्र के सिद्धांत व्यावसयिक इकाइयों पर व्यावहारिक कला के तीन प्रभागों लेखांकन, बही-खाता (बुक कीपिंग), तथा लेखा परीक्षा (Auditing) में लागू होते हैं। 

लेखाकर्म (लेखाशास्त्र) की परिभाषा (Definition of Accountancy) :-


आज आधुनिक व्यवसाय का आकार इतना विशाल  हो गया है कि इसमें सैकड़ोंव्यावसायिक लेनदेन होते रहते हैं तथा  इन लेन देनों के ब्यौरे को याद रखकर व्यावसायिक उपक्रम का संचालन करना असम्भव होता है अतः इन लेनदेनों के क्रमबद्ध रिकॉर्ड (records) रखे जाते हैं तथा उनके क्रमबद्ध ज्ञान व प्रयोग की कला को  ही लेखाशास्त्र कहते हैं। इसके  व्यावहारिक रूप को हम लेखांकन भी कह सकते हैं। 

एक परिभाषा के अनुसार  - ‘‘लेखांकन उन व्यवहारों और घटनाओं को, जो कि कम से कम अंशतः वित्तीय प्रकृति के है, मुद्रा के रूप में प्रभावपूर्ण तरीके से लिखने, वर्गीकृत करने तथा सारांश निकालने एवं उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला है।’’

अन्य शब्दों में  लेखांकन एक कला है, विज्ञान नहीं और  इस कला का उपयोग वित्तीय प्रकृति के मुद्रा में मापनीय व्यवहारों और घटनाओं के अभिलेखन, वर्गीकरण, संक्षेपण और निर्वचन के लिए किया जाता है।

स्मिथ एवं एशबर्न के  अनुसार- लेखांकन मुख्यतः वित्तीय प्रकृति के व्यावसायिक लेनदेनों और घटनाओं के अभिलेखन तथा वर्गीकरण का विज्ञान है और उन लेनदेनें और घटनाओं का महत्वपूर्ण सारांश बनाने, विश्लेषण तथा व्याख्या करने और परिणामों को उन व्यक्तियों को सम्प्रेषित करने की कला है, जिन्हें निर्णय लेने हैं।" इस परिभाषा के अनुसार लेखांकन विज्ञान और कला दोनों ही है।

उपर्युक्त परिभाषाओं  के आधार पर लेखांकन को व्यवसाय की  वित्तीय प्रकृति के लेन-देनों को सुनिश्चित एवं सुनियोजित तरीके से लिखने एवं  प्रस्तुत करने की कला कहा जा सकता है।

" लेखाकर्म ( लेखाशास्त्र ) से आशय उन सौदौ एवं घटनाओ को, जो कम से कम आंशिक रूप से वित्तीय प्रवती की हो ,प्रभावपूर्ण ढंग एवं मौद्रिक रूप में लिखने ,वर्गीकृत करने और संक्षिप्त सारांश बनाने एवं उनके परिणामों के निर्वचन करने की कला है । "



लेखाकर्म ( लेखाशास्त्र ) एक विज्ञान और कला है जिसके माध्यम से किसी संस्था के व्यवहारों का स्थाई लेखा नियमानुसार,सही और स्पष्ट रूप से बहिंयों मे रखा जाता है कि  उनसे सम्बंधित सभी विवरण, उनका आर्थिक प्रभाव तथा एक विशेष अवधि के अंत मे लाभ-हानि एवं आर्थिक स्थिति का पता चल सके ।



लेखांकन के आधारभूत सिद्धांत 
(Basic Principles of Accountancy) :-


1. लेखांकन कला और विज्ञान दोनों है।

2. लेखांकन एक कला और विज्ञान दोनों है क्योंकि  कला के रूप में यह वित्तीय परिणाम जानने में सहायक होती है। इसमें अभिलिखित तथा वर्गीकृत लेन-देनों और घटनाओं का सारांश तैयार किया जाता है। उन्हें विश्लेषित किया जाता है तथा उनका निर्वचन किया जाता है।

3. विज्ञान के रूप में यह एक सुव्यवस्थित ज्ञान की शाखा है इसमें लेनदेनों एवं घटनाओं का अभिलेखन, वर्गीकरण एवं संक्षिप्तिकरण के निश्चित नियम होते हैं और  इन निश्चित नियमों के कारण ही लेखों का क्रमबद्ध व व्यवस्थित रूप से अभिलेखन किया जाता है। इसलिए यह लगभग पूर्ण विज्ञान  ही है।


लेखाकर्म (लेखाशास्त्र) के कार्य (Functions of Accountancy) :-


  •  व्यापार की पुस्तकों की जाँच करना ।
  • प्रारंभिक लेखे की पुस्तक जर्नल व सहायक बही में लेनदेनों का लेखा करना ।


  • पुस्तकों में संशोधन एवं समायोजन के लेखे करना ।


  •  जर्नल  का वर्गीकरण एवं खाताबही में खातों   की खतौनी करना ।   
  •  व्यापार के अंतिम खाते बनाना ।
  • अभिलेखन (Recording)
  • रोकड़ प्रवाह, कोष प्रवाह, अनुपात विश्लेषण, प्रवृत्ति विश्लेषण आदि तकनीकियों से उचित परिणामों की व्याख्या करना।  


  • पुस्तकों में अंतिम खातों के विश्लेषण कर  उपयोगी जानकारी एकत्रित करके व्यापार के  लिए नीति निर्धारण में मदद देना ।
  • मापांकन, पूर्वानुमान, निर्णयन, तुलना एवं मूल्यांकन,नियंत्रण तथा कराधान लेखांकन के अन्य प्रमुख कार्य हैं।  


पुस्तपालन (बहीखाता) और लेखाकर्म (लेखाशास्त्र) में अन्तर (Difference between Bookkeeping and Accountancy)


पुस्तपालन (बहीखाता)  (Bookkeeping)

लेखाकर्म (लेखाशास्त्र) (Accountancy)


  • व्यापारिक लेनदेन जर्नल में लिखे जाते हैं ।

  • इसमें सम्बंधित खातों में लेन-देन किये जाते हैं ।

  • जर्नल में लेखों की खतौनी की जाती है ।

  • व्यापारिक लेनदेनों में शुद्धता की जाँच की जाती है ।

  • खातों का योग लगा कर शेष निकाला जाता है । 

  • व्यापारिक खातों की शुद्धता के लिए तलपट तैयार किया जाता है ।

  • अशुद्धियों का संशोधन एवं समायोजन नहीं किया जाता है । 

  • अशुद्धियों का संशोधन एवं  समायोजन के लेखे किये जातें हैं । 

  • पुस्तपालन ( बहीखाता ) का उद्देश्य व्यवहारों का लिखना, माल और नकद की स्थिति का सही ज्ञान करना होता है ।

  • इसका उद्देश्य व्यापार में लाभ-हानि ज्ञात करना एवं आर्थिक चिट्ठे की  मदद से  आर्थिक स्थिति का ज्ञान करना होता है ।

  • पुस्तपालन ( बहीखाता ) में अंतिम खाते नहीं बनाये जाते हैं । 
  • अंतिम खाते बनाये जाते हैं । 

  • विशेष योग्यता और लेखाकर्म ( लेखाशास्त्र ) के ज्ञान की जरूरत नहीं होती है । 

  • विशेष योग्यता और लेखाकर्म ( लेखाशास्त्र ) के ज्ञान की जरूरत होती है । 
  • पुस्तपालन ( बहीखाता )  लेखांकन की पहली स्थिति है और इसमें प्रतिदिन लेखा किया जाता है तथा इससे आर्थिक स्थिति का सही ज्ञान भी नहीं होता है ।  

  • लेखाकर्म ( लेखाशास्त्र ) लेखांकन की दूसरी स्थिति है और इसका कार्य अंतिम खाते बनाते समय किया जाता है तथा इससे आर्थिक स्थिति का सही ज्ञान प्राप्त  होता है ।  


पुस्तपालन (बहीखाता) और लेखाकर्म (लेखाशास्त्र) के उद्देश्य Objectives of Bookkeeping and Accountancy) :-



  • पुस्तकों में क्रय, विक्रय एवं स्कंध (स्टॉक) का ज्ञान ।
  • विधिवत अभिलेख रखना- प्राम्भिक लेखा पुस्तकों में लिखे गए लेनदेनों का विश्लेषण करना है। 
  • व्यापार में होने वाले सभी वित्तीय लेनदेनों को प्राम्भिक लेखा पुस्तकों में लिखना।  

  • एक निश्चित समय के आय एवं व्यय का ज्ञान ।
  • व्यावसायिक सम्पत्तियों को सुरक्षित रखना एवं उनका विश्लेषण करना। 

  • प्रत्येक व्यावसायिक लेन-देन को पुस्तकों में क्रमबद्ध तरीके से लिखना एवं उचित हिसाब रखना। 

  • व्यापार में  लाभ-हानि का ज्ञान ।

  • व्यापार की सम्पत्तियों, दायित्वों एवं आर्थिक स्थिति का ज्ञान।

  • देनदारों  एवं लेनदारों  का ज्ञान ।

  • नकद (रोकड़) एवं पूंजी का ज्ञान ।

  • व्यवसाय की आवश्यकताओं का ज्ञान ।

  • भविष्य की गलतियों से बचाव एवं साख प्राप्ति में सुविधाजनक ।
  • विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सहायक।  


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पुस्तपालन (बहीखाता) और लेखाकर्म (लेखाशास्त्र) के लाभ (Benefits of Bookkeeping and Accountancy) :-



  • लेनदेनों में भूल-चूक एवं कर्मचारियों के छल कपट से बचाव ।
  • व्यापार के क्रय एवं विक्रय-मूल्य के निर्धारण में  उपयोगी। 
  • व्यापारिक में प्रतिदिन के लेन-देन को लिखित रूप देना।  

  • व्यवसाय के मूल्यांकन में लाभ एवं कर-निर्धारण में  सुविधा ।
  • वस्तुओं के  वास्तविक मूल्यों की  गणना करने में सहायक
  • व्यापार के खरीदने एवं बेचने में उचित मूल्य की गणना करने में सहायक

  • तुलनात्मक अध्ययन, विवादों के निपटारों में  सुविधा एवं दिवालिया घोषित कराने में  सहायक
  • विभिन्न लेन-देनों को याद रखने में सहायक
  • पूंजी या लागत का पता लगाना

  • ऋण एवं साख पाने में सुविधा तथा ख्याति के मूल्यांकन में लाभ 
  • आर्थिक स्थिति का ज्ञान

लेखांकन के सैद्धान्तिक आधार (Theoretical basis of Accountancy) :- 



1. वित्तीय विवरण सामान्यतः स्वीकृत लेखांकन सिद्धान्त के अनुसार तैयार किये जाने चाहिए ताकि इनसे अन्तः अवधि तथा अन्तः कर्म की तुलना की जा सके।

2. किसी व्यवस्था या कार्य के नियंत्रण हेतु प्रतिपादित कोई विचार जिसे व्यावसायिक वर्ग के सदस्यों द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है। ये मनुष्य द्वारा निर्मित है विज्ञान की तरह सार्वभौमिक नहीं।

3. लेखाशास्त्र के सिद्धान्त सम्बद्धता, वस्तु-परकता एवं सुगमता के लक्षणों के होने पर ही  स्वीकृत  होते हैं। 

4. सत्ता की अवधारणा के अनुसार - व्यवसाय का उसके स्वामियों तथा प्रबंधकों से स्वतंत्र एवं पृथक अस्तित्व होता है। अतः व्यवसाय का स्वामी भी पूँजी के लिए व्यवसाय का लेनदार माना जाता है। व्यवसाय के स्वामी का पृथक अस्तित्व माना जाता है।

5. मुद्रा माप संबंधी अवधारणा - लेखांकन मौद्रिक व्यवहारों से संबंधित है अमौद्रिक घटनाएँ जैसे - कर्मचारियों को ईमानदारी, स्वामिभक्ति, कर्तव्यनिष्ठा का लेखांकन नहीं किया जा सकता है।

6. निरन्तरता की अवधारणा

7. लेखांकन दोहरा लेखा प्रणाली की  अवधारणा पर आधारित है जिसके अनुसार प्रत्येक डेबिट के बराबर क्रेडिट होता है।

8. उपार्जन अवधारणा के अनुसार व्यवसाय में आय-व्यय के मदों का लेखा देय आधार पर किया जाता है।

9. लेखा अवधि अवधारणा के आधार पर प्रत्येक लेखा अवधि के अन्त में वर्ष भर किये गये व्यवहारों के आधार पर लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा बनाया जाता है।

10. मिलान की अवधारणा उपार्जन की अवधारणा पर आधारित है।

11. रूढ़िवादिता सिद्धांत के अनुसार एक लेखाकार को भावी संभाव्य सभी हानियों की व्यवस्था करनी  चाहिए तथा भावी आय व लाभों को शामिल नहीं करना चाहिए।  


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दोस्तों मैं आप सभी से यह आशा करता हूँ  कि आप को मेरे  ब्लॉग की यह प्रथम पोस्ट What is the bookkeeping and accountancy Meaning - Definition  Functions  -  Objectives  Advantages अच्छी लगी होगी । मेरा आप सभी से सादर निवेदन है कि आप मेरे इस ब्लॉग को लाइक और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर करे जिससे आप को भविष्य में इस तरह की उपयोगी और ज्ञान वर्धक पोस्ट मिलती रहें ।


धन्यवाद ।  


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