दोस्तों, इस पोस्ट में हम आपको दोहरा लेखा प्रणाली और जर्नल में लेखे
करने के 3 नियमों के बारे में बताएंगे जिससे आप व्यापार में खातों एवं लेंन-देंनों
का लेखा आसानी से कर सकते हैं।
परिचय (Introduction) :- दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) लेखाकर्म (बहीखाता) की एक ऐसी प्रणाली हैं जिसमें किसी भी खाते की दोहरी प्रविष्टि की जाती है अर्थात लेखा करने के लिए किसी एक खाते को डेबिट (ऋणी) और उसके समतुल्य किसी दूसरे खाते को क्रेडिट (धनी) किया जाता है।
उदाहरण (Example) :– यदि सोहन को ८०० रूपए का माल बेचा
तो इस लेखे की दो खातों में निम्न प्रविष्टियाँ करनी होगी-
१)
सोहन के खाते में ८०० रूपए की डेबिट प्रविष्टि की जाएगी, तथा
२)
विक्रय खाते में ८०० रूपए की क्रेडिट प्रविष्टि की जाएगी।
दोहरी लेखा प्रणाली (Double Entry System) को आज के युग में बही खाते की उत्तम
पद्धति माना जाता है क्योंकि यह एक आधुनिक एवं पूर्ण पद्धति है और यह लेखे और व्यापारी के समस्त उद्देश्यो की पूर्ति करती है।
दोहरा लेखा प्रणाली में लेखे करने के नियम (Rules of Journalising in Double Entry System) :- दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) के सिद्धान्त निम्न तीन नियमों पर आधारित होते हैं परंतु उनको समझने से पहले हमें ये समझना होगा कि खाता किसे कहतें हैं ?
खाता (Account) :- विभिन्न व्यापारिक लेंन-देंन व्यापारिक पुस्तकों में जिन स्थानों पर लिखे जाते
हैं उन्हें खाता कहते हैं। खाते तीन प्रकार के होते हैं।
१)
व्यक्तिगत खाते (Personal Accounts) :- व्यक्तिगत खातों के अंतर्गत किसी व्यक्ति, संस्था और कंपनियों के नाम के खाते आते हैं जैसे :- रमेश का खाता, सुमन का खाता,फ्लोर मिल लिमिटेड का खाता या अपना क्लब का खाता आदि सभी व्यक्तिगत खातों के उदाहरण हैं ।
लेखा के नियम :-
- (लाभ) पाने वाले को डेबिट करो (Debit the Receiver) तथा
- (लाभ) देने वाले को क्रेडिट करो (Credit the giver)
२)
वास्तविक खाते (Real Accounts) :- वास्तविक खातों के अंतर्गत किसी व्यापार कि सम्पत्तियों से संबन्धित खाते आते हैं।
जैसे :- रोकड़ खाता, भवन खाता, माल खाता या फर्नीचर खाता आदि सभी वास्तविक खातों के उदाहरण हैं ।
लेखा के नियम (Rules of Accounting) :-
- व्यापार में जो आये उसे डेबिट करो (Debit what comes in) तथा
- व्यापार से जो जाये उसे क्रेडिट करो (Credit what goes
out)
३) अवास्तविक या नाममात्र के
खाते (Unreal or Nominal Accounts) :- जो खाते व्यापार में सिर्फ नाममात्र के लिए खोले जते हैं उन्हे अवास्तविक या नाममात्र के खाते कहते हैं। जैसे :- मजदूरी खाता, वेतन खाता, किराया खाता या ब्याज खाता आदि सभी नाममात्र खातों के उदाहरण हैं ।
लेखा के नियम (Rules of Accounting) :-
- सभी व्ययों और हानियों को डेबिट करो (Debit all Expenses and Losses) तथा
- सभी आयों और लाभों को क्रेडिट करो (Credit all incomes and gains)
यह तीनों नियम कभी नहीं बदलते हैं और इनका बहीखातों में दृढ़ता से प्रयोग किया जाता है।
इन तीनों नियमों को कुछ अन्य तरह से भी याद कर के सरलता से प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके लिये सबसे पहले सभी सौदों को उनके लेन-देनों कि प्रकृति के अनुसार पहचान कर उन्हें दो अलग-अलग रूपों में करना आवश्यक होता है।
उदाहरण एवं डेबिट/क्रेडिट के नियमों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है :-
क्रम संख्या |
लेखों का प्रकार |
लेखों का उदाहरण |
खाता (डेबिट) |
खाता (क्रेडिट) |
अंतिम खातों में लेखा |
१
|
व्यक्तिगत खाते (Personal
Accounts)
|
व्यक्ति, संस्था और कंपनियाँ (person,
organization and companies)
|
लाभ पाने वाले को (to the receiver)
|
लाभ देने वाले को (to the giver)
|
|
२
|
वास्तविक खाते (Real
Accounts)
|
वस्तुएँ सम्पत्तियाँ रोकड़ सहित (property
belonging to a business including cash)
|
आने पर (वस्तु) सम्पत्ति को (What
comes in)
|
जाने पर (वस्तु) सम्पत्ति को (was goes
out)
|
(वस्तु) आय
|
व्यय खाते में, एवं सम्पत्तियाँ आर्थिक पत्र में (Goods in
Profit & Loss account and Assets in Balance Sheet)
|
|||||
३
|
नाम मात्र के खाते (Unreal or nominal accounts)
|
सेवाओं के लिए भुगतान किया गया है तो सेवाओं को (व्ययं एवं हानि) (in Loss & Expenditure)
|
सेवाओं के लिए प्राप्त किया गया है तो सेवाओं को (आय एवं लाभ) (in Profit & Income)
|
आय-व्यय खाते में (in
Profit & Loss account)
|
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